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Aug 01, 2018 PALIGRAPH NEWS NATIONAL 0
ब्यूरो पालिग्राफ न्यूज
नई दिल्ली, 01 अगस्त 2018, (पालिग्राफ न्यूज)। सुप्रीम कोर्ट ने इसी साल की शुरुआत में एससी-एसटी एक्ट के कुछ अहम प्रावधानों को ये कहते हुए निरस्त कर दिया था, कि उनका दुरुपयोग देखा गया है. कोर्ट के इस फैसले के बाद दलित संगठनों ने कई राज्यों में विरोध प्रदर्शन किया था, जिसके चलते कई जगह हिंसक घटनाएं भी सामने आई थीं. कोर्ट के उस फैसले के बाद से ही मोदी सरकार बैकफुट पर नजर आ रही थी और कांग्रेस समेत दूसरे विपक्षी दल सरकार पर दलित विरोधी होने का आरोप लगा रहे थे. यहां तक कि दलितों का नेतृत्व करने वाले एनडीए के सहयोगी दलों ने भी सरकार से इस दिशा में कदम उठाने की मांग की थी. सिर्फ इतना ही नहीं, हाल में जब सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जस्टिस ए.के गोयल को नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल का अध्यक्ष नियुक्त किया गया तो एलजेपी ने इसका पुरजोर विरोध किया. दरअसल, एके गोयल ने ही सुप्रीम कोर्ट में रहते हुए एससी/एसटी एक्ट के कुछ प्रावधानों को निरस्त करने का आदेश दिया था, जिसके चलते रामविलास पासवान की पार्टी समेत दूसरे संगठनों ने इस नियुक्ति का विरोध किया. यहां तक कि पासवान ने मोदी सरकार को 9 अगस्त से पहले इस संबंध में संशोधन लाने की मांग करते हुए सड़कों पर उतरने की चेतावनी दी थी.
केंद्रीय कैबिनेट ने अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निरोधक) अधिनियम में संशोधन को मंजूरी दे दी है. जिसके बाद मोदी सरकार संशोधित बिल को मौजूदा संसद सत्र में ही पेश करेगी. इस मसले पर एनडीए के सहयोगी दल लोक जनशक्ति पार्टी के मुखिया और केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी पत्र लिखा था. पासवान ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद मोदी सरकार की दलित विरोधी छवि बनने का दावा किया था. जिसके बाद अब मोदी सरकार ने बिल में संशोधन का फैसला किया है.
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